अरबपतियों ने पैसे फेंके, मीडिया ने कीचड़ उछाला, सत्ता ने डर फैलाया — लेकिन न्यूयॉर्क ने ज़ोहरान ममदानी को चुना।
4 नवंबर 2025 को अमेरिका का सबसे बड़ा शहर, न्यूयॉर्क, अपने इतिहास की सबसे क्रांतिकारी सुबह के साथ जागा।
34 वर्षीय भारतीय मूल के ज़ोहरान क्वामे ममदानी ने उस सत्ता को हिला दिया, जो अब तक अरबपतियों, मीडिया साम्राज्यों और नस्लवादी प्रतिष्ठानों के शिकंजे में थी।
यह केवल एक चुनावी जीत नहीं — यह उस संघर्ष की परिणति है, जिसमें लोकतंत्र ने पैसे के साम्राज्य को परास्त किया।
अरबपतियों की हार, जनता की जीत
ममदानी के खिलाफ 22 मिलियन डॉलर की फंडिंग झोंकी गई।
माइकल ब्लूमबर्ग, बिल एकमैन, लॉडर परिवार — यानी वह पूरा वर्ग जिसने दशकों से शहर की राजनीति को नियंत्रित किया, एक नौजवान समाजवादी के खिलाफ एकजुट हुआ।
ब्लूमबर्ग ने अकेले 13.3 मिलियन डॉलर खर्च किए, ताकि “फिक्स द सिटी” नाम के सुपर PAC के ज़रिए ममदानी को हराया जा सके।
लेकिन न्यूयॉर्क के मतदाताओं ने दिखा दिया कि लोकतंत्र बिकता नहीं — वह जिंदा रहता है।
ममदानी ने चुनावी मंच से कहा था:
“अरबपति हमें खतरा मानते हैं — और वे सही हैं। हम उनके उस भ्रम के लिए खतरा हैं कि लोकतंत्र उनके पैसे से खरीदा जा सकता है।”
यह बयान अब इतिहास में दर्ज हो चुका है।
ट्रंप-मस्क बनाम ममदानी: एक वैचारिक युद्ध
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अरबपति एलन मस्क ने खुलेआम ममदानी के खिलाफ अभियान चलाया।
ट्रंप ने उन्हें “कम्युनिस्ट पागल” कहा और धमकी दी कि अगर वे जीते तो संघीय फंड रोक दिया जाएगा।
मस्क ने एक्स (Twitter) पर प्रचार किया:
“कर्टिस को वोट दें, नहीं तो ममदानी आएंगे और शहर डूब जाएगा!”
लेकिन यह डर फैलाने की राजनीति उलटी पड़ी।
न्यूयॉर्क के लाखों मतदाताओं ने मस्क और ट्रंप की धमकियों को लोकतंत्र पर हमले के रूप में देखा — और ममदानी को वोट देकर जवाब दिया।
इस्लामोफोबिया की आग में तपता अभियान
इस चुनाव को जितना आर्थिक मोर्चे पर लड़ा गया, उतना ही यह नस्ल और धर्म के मोर्चे पर भी लड़ा गया।
सोशल मीडिया से लेकर टेलीविज़न तक, ममदानी को ‘जिहादी’, ‘आतंकवादी’, ‘कट्टर मुस्लिम’ कहकर बदनाम किया गया।
रिपब्लिकन कैंपेन ने उनकी दाढ़ी को जानबूझकर गहरी कर दिखाया, ताकि डर का माहौल बनाया जा सके।
यह वही अमेरिका था, जिसने 9/11 के बाद मुसलमानों पर शक की विरासत छोड़ी थी — लेकिन अब उसी शहर ने एक मुस्लिम मेयर चुनकर उस विरासत को चुनौती दी है।
“भारत का बेटा, अफ्रीका की मिट्टी में जन्मा, न्यूयॉर्क का नेता”
ज़ोहरान ममदानी की कहानी सीमाओं से परे है।
उनके पिता महमूद ममदानी — युगांडा में जन्मे भारतीय मूल के विद्वान।
उनकी मां मीरा नायर — भारत की मशहूर फिल्म निर्माता।
उनका जन्म कंपाला में हुआ, बचपन दक्षिण अफ्रीका में बीता, और फिर 1999 में वे न्यूयॉर्क पहुंचे।
यानी वह नस्ल, प्रवास और पहचान की उन तमाम कहानियों का संगम हैं, जिन्हें अमेरिकी राजनीति लंबे समय तक नकारती रही।
एक भारतीय मुस्लिम पिता और पंजाबी हिंदू मां का बेटा — और अब दुनिया के सबसे प्रभावशाली शहर का मेयर।
यह केवल व्यक्तिगत सफलता नहीं, बल्कि बहुलतावाद की एक ऐतिहासिक जीत है।
विचारों की राजनीति, जाति-धर्म की नहीं
ममदानी ने खुद को Democratic Socialist कहा है — यानी वह राजनीति जो मजदूर, प्रवासी, और वंचित वर्गों की बात करती है।
उन्होंने कॉरपोरेट दान ठुकराया और दरवाज़े-दरवाज़े जाकर अभियान चलाया।
जहां विपक्ष के पास डॉलर थे, वहां ममदानी के पास “डोरबेल डेमोक्रेसी” थी।
उनका नारा था —
“एक शहर सभी के लिए — न कि सिर्फ धनी लोगों के लिए।”
मोदी की आलोचना और भारत से रिश्ता
भारत में यह खबर उतनी ही गूंज रही है जितनी न्यूयॉर्क में।
ममदानी ने खुले मंच से नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी, 2002 के गुजरात दंगों को “राज्य-प्रायोजित नरसंहार” बताया था।
उनकी आलोचना व्यक्तिगत नहीं थी — वैचारिक थी।
उन्होंने कहा था:
“मैं उस भारत में विश्वास करता हूं, जो सबका है। मोदी और भाजपा उस भारत को छोटा बना रहे हैं।”
यह बयान चुनाव से पहले हिंदू मंदिरों में दिए उनके भाषणों के साथ संतुलित हुआ, जहां उन्होंने कहा —
“मैं मोदी का विरोध करता हूं, हिंदू धर्म का नहीं। मैं नफरत का विरोध करता हूं।”
न्यूयॉर्क का नया चेहरा: वॉल स्ट्रीट बनाम मेन स्ट्रीट
ममदानी की जीत केवल राजनीतिक नहीं, प्रतीकात्मक भी है।
वह शहर जहां वॉल स्ट्रीट तय करता था कि कौन जीतेगा — अब मेन स्ट्रीट (आम जनता) ने तय कर दिया कि लोकतंत्र अब डॉलर से नहीं, दिल से चलेगा।
1 जनवरी 2026 को जब वह 111वें मेयर के रूप में शपथ लेंगे, तो यह केवल न्यूयॉर्क का नहीं, पूरे वैश्विक दक्षिण का गर्व का क्षण होगा।
“यह जीत किसी एक व्यक्ति की नहीं, यह उम्मीद की वापसी है”
ज़ोहरान ममदानी की जीत ने एक नई परिभाषा गढ़ी है —
जहां धर्म डर नहीं, विविधता का प्रतीक है।
जहां अरबपति नहीं, आम आदमी तय करता है कि शहर किस दिशा में जाएगा।
और जहां राजनीति अब प्रचार की भाषा में नहीं, सच्चाई की ताकत में बोलेगी।
“हमने यह शहर अरबपतियों से वापस लिया — अब यह जनता का है।”
— ज़ोहरान ममदानी, विजयी भाषण
इतिहास कभी-कभी वोटिंग मशीनों में लिखा जाता है।
2025 का न्यूयॉर्क चुनाव, ऐसा ही एक पन्ना है —
जहां लोकतंत्र ने एक नया नाम लिया: ज़ोहरान ममदानी।
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