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Home»लेख विचार

टैगोर के राष्ट्रगान : दक्षिण एशिया के बेशकीमती रत्न-

adminBy adminNovember 14, 2025 लेख विचार No Comments1 Min Read
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राम पुनियानी

भाजपा की वाशिंग मशीन में धुल चुके असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अब एक आक्रामक दक्षिणपंथी हैं। वे समय समय पर मुस्लिम समुदाय को अपमानित करने वाले वक्तव्य देते रहते हैं। यह समुदाय असम में जबरदस्त उपेक्षा झेल रहा है। हाल में असम में कांग्रेस की एक बैठक में एक कांग्रेसी ने ‘आमार सोनार बांग्ला’ गीत गाया। सरमा ने अपनी पुलिस को बांग्लादेश का राष्ट्रगान गाने के लिए उस व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा।

शायद सरमा को इस गाने का इतिहास, जिन हालातों में वह रचा गया और उसके भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से रिश्ते के बारे में जरा भी जानकारी नहीं है यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि मूल ‘आमार सोनार’ गीत की केवल शुरूआती 10 पंक्तियों को बांग्लादेश का राष्ट्रगान  बनाया गया।

अपनी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के मुताबिक अंग्रेजों ने सन् 1905 में बंगाल का पश्चिम बंगाल और पूर्व बंगाल में विभाजन कर दिया जाहिर तौर पर इसका कारण प्रशासनिक बताया गया लेकिन उसका असली प्रयोजन स्पष्टतः भारतीयों को धर्म के आधार पर  बांटना था। पश्चिमी बंगाल में हिन्दुओं का बहुमत था और पूर्वी बंगाल में मुसलमानों का इस विभाजन का भारतीयों ने जी जान से विरोध  किया। इसी दौरान गुरूदेव ने बांग्ला गौरव को दर्शाने और बंगभंग का विरोध करने के उद्देश्य से यह गाना लिखा यह गाना बंगाल विभाजन के विरोध की केन्द्रीय धुरी बना गया और आखिरकार अंग्रेजों को बंगाल को दो हिस्सों में बांटने का अपना फैसला वापिस लेना पड़ा।

यहां यह बताना दिलचस्प होगा कि बंगभंग के खिलाफ चले इस आंदोलन और हिन्दू-मुस्लिम एकता को मजबूती प्रदान करने के लिए  राखी बांधने-बंधवाने का अभियान भी चला  भारत के बंटवारे की त्रासदी के बाद पूर्वी बंगाल और पश्चिमी पंजाब  पाकिस्तान का हिस्सा बने। पाकिस्तान की सत्ता का केन्द्र पश्चिमी पाकिस्तान था।

 आर्थिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से पश्चिमी पाकिस्तान का बोलबाला रहा आया और इसके नतीजे में पूर्वी पाकिस्तान के निवासी उपेक्षित महसूस करने लगे। घाव पर नमक छिड़कते हुए उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा घोषित कर दिया गया। इससे पूर्वी पाकिस्तान के बांग्ला बोलने वाले मुस्लिम निवासियों में अलगाव की भावना में और इजाफा हुआ। उनमें अलग राष्ट्र बनने की इच्छा जागृत हुई और प्रबल होती गई।

पूर्वी पाकिस्तान को अलग देश बनाने के लिए चले आंदोलन का नेतृत्व मुजीबुर्रहमान ने किया। इन बंगालियों का  थीम सांग था ‘आमार सोनार’। टैगोर को पूर्वी पाकिस्तान में अत्यंत श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता था। मुक्ति वाहिनी के  आंदोलन और इंदिरा गांधी के दक्ष नेतृत्व में भारतीय सेना के सहयोग से सन 1971 में बांग्लादेश नामक नए राष्ट्र का जन्म हुआ। आमार सोनार गीत की प्रथम दस पंक्तियों को बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया गया।

 मेरे एक पत्रकार मित्र ने मुझे बताया था कि जब वे बांग्लादेश के शीर्षस्थ नेता से मिलने गए तो उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि  गुरूदेव का चित्र उनके प्रतीक्षा कक्ष में एक प्रमुख स्थान पर लगा हुआ था यह गर्व की बात है कि दो पड़ोसी देशों के  राष्ट्रगान एक ही कवि द्वारा रचित हैं। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि ‘आमार सोनार’ की धुन रबीन्द्र संगीत पर आधारित है  और इस मनमोहक धुन को संगीत निदेशक समर दास ने तैयार किया था। आमार सोनार के दो बड़े महत्वपूर्ण पहलू हैं।

 पहला यह कि यह अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति के खिलाफ एक मुख्य थीम सांग था और दूसरा यह कि इसकी शुरूआती दस पंक्तियों को बांग्लादेश का राष्ट्रगान बनाया गया। टैगोर ने अपने इस योगदान से भारत को गौरवान्वित किया है और इसकी  ऐतिहासिक प्रासंगिकता के चलते इसका गायन किसी भी तरह से राष्ट्रविरोधी नहीं माना जा सकता।

गुरूदेव का दूसरा महत्वपूर्ण योगदान है जन गण मन, जिसे भारत के राष्ट्रगान के रूप में चुना गया। भारत का एक राष्ट्रगीत भी है – वंदे मातरम। कुछ दक्षिणपंथी पूरे वंदे मातरम गीत को राष्ट्रगीत बनवाना चाहते थे  इसमें समस्या यह थी कि इसमें हिन्दू धार्मिक  छवियां थीं और शुरूआती दो छंदों के बाद इसमें राष्ट्र को हिंदू देवी दुर्गा के रूप में देखा गया था। यह राष्ट्रीय आंदोलन के धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र के निर्माण के सपने के खिलाफ होता।

 साथ ही मूलतः यह बंकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास आनंद मठ का हिस्सा है। उपन्यास के मूल संस्करण में एक मुस्लिम शासक  के खिलाफ विद्रोह दर्शाया गया है और इस विद्रोह की सफलता के फलस्वरूप अंग्रेजों का राज स्थापित होता है।कांग्रेस के नेतृत्व  वाले राष्ट्रीय आंदोलन की गीत समिति को सर मोहम्मद इकबाल रचित ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा’, वंदे मातरम और जन गण मन इन तीनों में से एक का चयन करना था।

 सारे जहां से अच्छा को इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि इसके रचयिता मोहम्मद इकबाल स्वयं पाकिस्तान चले गए थे। वंदे मातरम को संशोधित करके राष्ट्रगीत बना दिया गया और जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में चुना गया क्योंकि यह भारत की धर्मनिरपेक्ष विविधता को प्रतिबिंबित करता है ये आरोप भी लगाए गए कि जन गण मन ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम की स्तुति में लिखा गया  था यह मीडिया में दी गई गलत खबरों के कारण हुआ जार्ज पंचम द्वारा बंग भंग के फैसले को पलटने का स्वागत करने के दौरान एक ही दिन दो गीत गाए गए थे पहला था रामानुज चौधरी द्वारा लिखित गीत जो जार्ज पंचम के बंगभंग के फैसले को पलटने की प्रशंसा में था और दूसरा था जन गण मन एंग्लो इंडियन मीडिया ने यह गलत खबर दी कि जन गण मन जार्ज पंचम की शान में गाया गया था।

एक आरोप यह भी है कि इसमें ‘अधिनायक’ शब्द का प्रयोग जार्ज पंचम के लिए किया गया है टैगोर ने यह स्पष्ट किया था कि अधिनायक से आशय है ‘युगों युगों से मनुष्य की नियति का महान सारथी’ और यह किसी भी तरह से जार्ज पंचम, जार्ज षष्ठम या कोई भी जार्ज नहीं हो सकता भाषाई मीडिया ने इसका समाचार सही ढंग से दिया था और टैगोर को ठीक से समझने वाले अध्येताओं ने भी इसकी  ऐसी ही व्याख्या की।

 राष्ट्रगान भारत का सच्चा प्रतिबिंब है दक्षिणपंथी तत्व पूरे वंदे मातरम गीत को गाने पर जोर देते हैं और इसे राष्ट्रगान पर प्राथमिकता देते हैं मुझे याद है कि 1992-93 की मुंबई हिंसा के बाद जब शांति मार्च निकाले जा रहे थे, तब इन जुलूसों को हूट करने वाले चिल्ला रहे थे  ‘इस देश में रहना है तो  वंदे मातरम कहना होगा’ शुक्र है कि भारत की गीत समिति ने जन गण मन और वंदे मातरम के बीच एक  बेहतरीन संतुलन कायम किया। सरमा जैसे व्यक्ति आज भी लोगों को डराने-धमकाने के लिए बहानों की खोज करते रहते हैं।

 उन्हें उन गौरवशाली आंदोलनों के बारे में कुछ भी पता नहीं है जिनसे आमार सोनार जैसे गीत निकले। (अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया। लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म के अध्यक्ष हैं)

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